प्रश्न 1: सबसे पहले हम जानना चाहेंगे कि आपको वकालत के क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
उत्तर:
मैं एक मैथिली ब्राह्मण परिवार से आता हूँ, जो आर्थिक रूप से काफी साधारण था। जीवन में कई बार संघर्षों का सामना करना पड़ा, लेकिन कहीं न कहीं मेरे मन में हमेशा यह भाव था कि मुझे समाज के लिए कुछ करना है। कानून का क्षेत्र मुझे इसलिए आकर्षित करता था क्योंकि यह वह माध्यम है जिससे आप न केवल खुद का जीवन सुधार सकते हैं, बल्कि दूसरों को भी न्याय दिला सकते हैं। यही सोच मुझे वकालत की ओर ले आई।
प्रश्न 2: आपने किन-किन अदालतों में प्रैक्टिस की है?
उत्तर:
मैं वर्तमान में पटना सिविल कोर्ट और मधुबनी जिला एवं सत्र न्यायालय में सक्रिय रूप से प्रैक्टिस करता हूँ। इसके अलावा समय-समय पर पटना हाईकोर्ट में भी मैंने कई महत्वपूर्ण मामलों की पैरवी की है। मेरा ध्यान खास तौर पर क्रिमिनल केस और सिविल केस पर रहता है।
प्रश्न 3: आपने Criminal Psychology और Criminal Law में डॉक्टरेट प्राप्त की है। इस विषय में थोड़ा विस्तार से बताइए।
उत्तर:
जी हाँ, मैंने क्रिमिनल साइकोलॉजी और क्रिमिनल लॉ में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। इसका मकसद सिर्फ शैक्षणिक उपलब्धि नहीं था, बल्कि अपराधियों की मानसिकता को समझना और केस की जड़ तक पहुँचकर न्याय दिलाना मेरा लक्ष्य रहा है। इस ज्ञान से मैं कोर्ट में केस को बहुत ही सूक्ष्मता और तार्किकता के साथ प्रस्तुत कर पाता हूँ।
प्रश्न 4: क्या आप अपने जीवन के शुरुआती संघर्षों के बारे में कुछ साझा करेंगे?
उत्तर:
बचपन से ही जीवन में संघर्ष रहा। आर्थिक तंगी, सीमित संसाधन, और सामाजिक चुनौतियाँ — इन सबका सामना किया। पर मैंने कभी हार नहीं मानी। दिन-रात मेहनत की, पढ़ाई में लगन रखी और अपने लक्ष्य से कभी भटका नहीं। आज अगर मैं इस मुकाम पर हूँ, तो उसका श्रेय मेरी मेहनत और मेरे परिवार के समर्थन को जाता है।
प्रश्न 5: आपके परिवार का इस सफर में क्या योगदान रहा?
उत्तर:
मेरी माँ मेघा देवी और पत्नी शोभा सिंह मिश्रा ने मेरे पूरे सफर में मेरी ताकत बनकर साथ दिया। जब भी मैं थक जाता था या निराश हो जाता था, उन्होंने मुझे प्रेरणा दी। उनका विश्वास ही था जिसने मुझे कभी टूटने नहीं दिया। ये दोनों मेरी सफलता की असली सूत्रधार हैं।
प्रश्न 6: आपने समाज सेवा के तहत कौन-कौन से कार्य किए हैं?
उत्तर:
मेरे लिए वकालत सिर्फ पेशा नहीं, एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है। मैंने महिलाओं, बच्चों और गरीब परिवारों के लिए कई मामलों की निशुल्क पैरवी की है। मेरा मानना है कि न्याय किसी भी वर्ग के लिए सीमित नहीं होना चाहिए। मेरे दरवाज़े उन लोगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं जो न्याय के लिए लड़ना चाहते हैं लेकिन आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं।
प्रश्न 7: आपके नाम पर 20 से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार और गोल्ड मेडल हैं, यह एक बड़ी उपलब्धि है। कुछ बताएँ इन पुरस्कारों के बारे में?
उत्तर:
जी, यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मेरे कार्य को देशभर में सराहा गया है। मुझे 20 से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार और गोल्ड मेडल मिले हैं — यह सब मेरे ईमानदार प्रयास और सामाजिक योगदान के लिए दिए गए हैं। ये सम्मान मुझे आगे और बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं।
प्रश्न 8: आप कितनी भाषाओं का ज्ञान रखते हैं?
उत्तर:
मुझे कई क्षेत्रीय भाषाओं का ज्ञान है, जैसे कि मैथिली, भोजपुरी, हिंदी, मगही, और कुछ हद तक बंगाली भी। भाषाओं का यह ज्ञान कोर्ट में काम करते समय बहुत सहायक होता है, खासकर जब मैं ग्रामीण या दूरदराज़ के लोगों के केस लेता हूँ।
प्रश्न 9: युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे जो वकालत को करियर के रूप में अपनाना चाहते हैं?
उत्तर:
मैं युवाओं से कहना चाहूँगा कि अगर आप कानून के क्षेत्र में आना चाहते हैं, तो इसे सिर्फ पैसा कमाने का जरिया न समझें। यह एक बहुत बड़ा सामाजिक दायित्व है। न्याय के लिए आपकी प्रतिबद्धता, ईमानदारी और मेहनत ही आपको सफल बनाएगी। अगर आपमें जुनून है, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।
प्रश्न 10: भविष्य में आपकी क्या योजनाएँ हैं?
उत्तर:
मेरी योजना है कि मैं और भी ज्यादा गरीबों और असहाय लोगों की मदद कर सकूँ। साथ ही, मैं एक लीगल एजुकेशन सेंटर खोलना चाहता हूँ जहाँ से कमज़ोर तबके के बच्चों को वकालत की शिक्षा दी जा सके। मेरा सपना है कि न्याय हर घर तक पहुँचे — यह मेरा मिशन है।
🌿 अंतिम शब्द:
Advocate Sourabh Mishra जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि कठिनाइयाँ चाहे जितनी भी हों, अगर संकल्प मजबूत हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। उन्होंने न सिर्फ खुद को स्थापित किया बल्कि समाज के लिए एक मिसाल बनकर उभरे हैं।